भागवत गीता - पहला अध्याय
अर्जुन विषाद योग
अर्जुन विषाद योग, भागवत गीता के पहले अध्याय में वर्णित है, जिसमें अर्जुन अपने कर्तव्यों को लेकर संदेह और मानसिक क्लेश में हैं। भगवान श्रीकृष्ण के साथ उनका संवाद इस अध्याय की मुख्य विशेषता है। नीचे पहले अध्याय के प्रारंभिक श्लोक दिए गए हैं:
श्लोक 1
संस्कृत: धृतराष्ट्र उवाच | धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः | मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय || 1.1 ||
हिंदी: धृतराष्ट्र बोले: हे संजय! धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में एकत्रित युद्ध की इच्छा रखने वाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?
English: Dhritarashtra said: O Sanjaya, what did my sons and the sons of Pandu do when they assembled on the holy field of Kurukshetra, eager to fight?
श्लोक 2
संस्कृत: सञ्जय उवाच | दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा | आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् || 1.2 ||
हिंदी: संजय बोले: तब राजा दुर्योधन ने पाण्डवों की सेना को व्यूहरचना में खड़ा देखकर, अपने गुरु के पास जाकर यह वचन कहा।
English: Sanjaya said: O King, having observed the Pandava army arrayed in a military formation, King Duryodhana approached his teacher and spoke the following words.
श्लोक 3
संस्कृत: पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्। व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता।।
हिंदी: हे आचार्य! देखिए पाण्डु के पुत्रों की इस विशाल सेना को, जिसे आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र ने व्यवस्थित रूप से खड़ा किया है।
English: O teacher! Behold this mighty army of the sons of Pandu, arranged in a military formation by your intelligent disciple, the son of Drupada.
श्लोक 4
संस्कृत: अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि। युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः।।
हिंदी: इस सेना में भीम और अर्जुन के समान महान धनुर्धारी, युयुधान, विराट, और महारथी द्रुपद जैसे वीर योद्धा उपस्थित हैं।
English: Here are heroic bowmen equal in battle to Bhima and Arjuna, great warriors like Yuyudhana, Virata, and the mighty charioteer Drupada.
श्लोक 5
संस्कृत: धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्। पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः।।
हिंदी: यहाँ धृष्टकेतु, चेकितान, वीर काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और शैब्य जैसे श्रेष्ठ नरवीर उपस्थित हैं।
English: There are also great heroic warriors like Dhrishtaketu, Chekitana, the valiant king of Kasi, Purujit, Kuntibhoja, and the noble king Shaibya.
श्लोक 6
संस्कृत: युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्। सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः।।
हिंदी: यहाँ युधामन्यु, उत्तमौजा, अभिमन्यु और द्रौपदी के पुत्र जैसे सभी महारथी योद्धा उपस्थित हैं।
English: There are also mighty warriors like Yudhamanyu, Uttamauja, Abhimanyu, and the sons of Draupadi—all great chariot fighters.
श्लोक 7
संस्कृत: अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम। नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते।।
हिंदी: हे द्विजश्रेष्ठ! अब मेरी सेना के मुख्य योद्धाओं को जानो। तुम्हारे ज्ञान के लिए मैं उनका वर्णन करता हूँ।
English: O best among the twice-born, now I shall describe the prominent commanders of my own army, for your information.
श्लोक 8
संस्कृत: भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिंजयः। अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च।।
हिंदी: आप स्वयं, भीष्म, कर्ण, युद्ध में अजेय कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण, और सौमदत्त भी हमारी सेना में प्रमुख योद्धा हैं।
English: You yourself, Bhishma, Karna, the ever victorious Kripacharya, Ashwatthama, Vikarna, and Bhurishrava, the son of Somadatta, are all notable warriors in our army.
श्लोक 9
संस्कृत: अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः। नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः।।
हिंदी: इसके अलावा, कई अन्य वीर योद्धा भी हैं, जिन्होंने मेरे लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया है। ये सभी योद्धा विभिन्न प्रकार के शस्त्रों और युद्धकला में निपुण हैं।
English: Besides them, there are many other heroes who are prepared to lay down their lives for my sake. They are all skilled in various weapons and are experienced in warfare.
श्लोक 10
संस्कृत: अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्। पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्।।
हिंदी: हमारी सेना, जो भीष्म द्वारा संरक्षित है, अपरिमित है। जबकि पाण्डवों की सेना, जो भीम द्वारा संरक्षित है, सीमित है।
English: Our army, protected by Bhishma, is unlimited, whereas the Pandava army, protected by Bhima, is limited.
श्लोक 11
संस्कृत: अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः। भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि।।
हिंदी: सभी रणनीतिक स्थानों पर अपने-अपने स्थान पर खड़े रहो और सभी मिलकर पितामह भीष्म की रक्षा करो।
English: Standing at your respective positions at all strategic points, all of you must guard Bhishma carefully.
श्लोक 12
संस्कृत: तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः। सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान्।।
हिंदी: कुरुओं के वृद्ध पितामह भीष्म ने सेनाओं का उत्साह बढ़ाने के लिए सिंह के गर्जन के समान शंख ध्वनि की।
English: Then, Bhishma, the grand old man of the Kuru dynasty, blew his conch loudly like a lion's roar, filling Duryodhana’s army with joy.
श्लोक 13
संस्कृत: ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः। सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्।।
हिंदी: इसके बाद शंख, नगाड़े, ढोल, तुरही और सींग जैसी वाद्ययंत्रों की ध्वनि एक साथ होने लगी, जो बड़ी भयंकर थी।
English: After that, conches, kettledrums, tabors, drums, and horns suddenly blared forth, and the sound became tumultuous.
श्लोक 14
संस्कृत: ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ। माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः।।
हिंदी: फिर, सफेद घोड़ों से जुते अपने महान रथ पर खड़े होकर, श्रीकृष्ण और अर्जुन ने अपने दिव्य शंख बजाए।
English: Then, Lord Krishna and Arjuna, stationed on their grand chariot yoked with white horses, blew their celestial conches.
श्लोक 15
संस्कृत: पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः। पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः।।
हिंदी: हृषीकेश (कृष्ण) ने पाञ्चजन्य नामक शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाया, और भीम ने पौण्ड्र नामक महान शंख बजाया।
English: Hrishikesha (Krishna) blew the conch called Panchajanya, Arjuna blew the conch named Devadatta, and Bhima blew his mighty conch, Paundra.
श्लोक 16
संस्कृत: अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।।
हिंदी: राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक शंख बजाया, नकुल और सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाए।
English: King Yudhishthira blew the conch called Anantavijaya, while Nakula and Sahadeva blew the conches named Sughosha and Manipushpaka.
श्लोक 17
संस्कृत: काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः। धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः।।
हिंदी: काशी के राजा, महान धनुर्धर शिखंडी, धृष्टद्युम्न, विराट और अपराजित सात्यकि ने भी अपने-अपने शंख बजाए।
English: The King of Kashi, the great archer Shikhandi, Dhrishtadyumna, Virata, and the undefeated Satyaki also blew their conches.
श्लोक 18
संस्कृत: द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते। सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक् पृथक्।।
हिंदी: द्रुपद, द्रौपदी के पाँच पुत्र और अभिमन्यु ने भी अलग-अलग शंख बजाए।
English: Drupada, the sons of Draupadi, and the mighty-armed Abhimanyu, son of Subhadra, all blew their respective conches.
श्लोक 19
संस्कृत: स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्। नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन्।।
हिंदी: यह घोष (ध्वनि) धार्तराष्ट्रों के हृदयों को विदीर्ण करने वाला और आकाश व पृथ्वी को गूंजाने वाला था।
English: That tumultuous sound, echoing through the sky and the earth, shattered the hearts of the sons of Dhritarashtra.
श्लोक 20
संस्कृत: अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः। प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः।।
हिंदी: इसके बाद, अर्जुन ने युद्ध के लिए तैयार धार्तराष्ट्रों को देखकर अपना धनुष उठाया।
English: Then, seeing the sons of Dhritarashtra positioned for battle, Arjuna, with a flag marked by Hanuman, took up his bow.
श्लोक 21
संस्कृत: हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते। सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत।।
हिंदी: तब अर्जुन ने हृषीकेश (कृष्ण) से कहा: "हे अच्युत, मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले चलें।"
English: At that time, Arjuna said these words to Hrishikesha (Krishna): "O Achyuta, place my chariot in the middle of the two armies."
श्लोक 22
संस्कृत: यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्। कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे।।
हिंदी: मैं उन योद्धाओं को देखना चाहता हूं जो इस युद्ध में लड़ने के लिए तैयार हैं और जिनसे मुझे युद्ध करना होगा।
English: Let me see those warriors assembled here, eager for battle, with whom I must fight in this great war.
श्लोक 23
संस्कृत: योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः। धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः।।
हिंदी: मैं उन लोगों को देखना चाहता हूं जो इस युद्ध में दुर्बुद्धि धार्तराष्ट्र (दुर्योधन) को प्रसन्न करने के लिए खड़े हैं।
English: I wish to observe those who have assembled here to fight in this war to please the evil-minded son of Dhritarashtra.
श्लोक 24
संस्कृत: संजय उवाच: एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत। सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्।।
हिंदी: संजय बोले: हे भारत, गुडाकेश (अर्जुन) के इस प्रकार कहने पर हृषीकेश (कृष्ण) ने उत्तम रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कर दिया।
English: Sanjaya said: O Bharata, thus addressed by Gudakesha (Arjuna), Hrishikesha (Krishna) placed the excellent chariot between the two armies.
श्लोक 25
संस्कृत: भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्। उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति।।
हिंदी: भीष्म, द्रोण और अन्य महारथियों के सामने रथ खड़ा करके हृषीकेश ने कहा, "हे पार्थ, इन कौरवों को देखो।"
English: In front of Bhishma, Drona, and all the other chieftains, Hrishikesha said, "O Partha, behold these Kurus gathered here."
श्लोक 26
संस्कृत: तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितृ़नथ पितामहान्। आचार्यान्मातुलान्भ्रातॄन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा।।
हिंदी: वहां अर्जुन ने अपने पितरों, पितामहों, आचार्यों, मामा, भाई, पुत्र, पौत्र और मित्रों को देखा।
English: There Arjuna saw his fathers, grandfathers, teachers, maternal uncles, brothers, sons, grandsons, and friends stationed in the ranks.
श्लोक 27
संस्कृत: श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि। तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान्।।
हिंदी: सेनाओं में दोनों ओर खड़े अपने ससुर और स्नेही मित्रों को देखकर कौन्तेय (अर्जुन) ने देखा कि ये सभी उनके संबंधी हैं।
English: Arjuna, seeing his fathers-in-law and companions on both sides, perceived them as his own kith and kin.
श्लोक 28
संस्कृत: अर्जुन उवाच: दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्। सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति।।
हिंदी: अर्जुन बोले: हे कृष्ण! इस युद्ध के लिए उपस्थित अपने संबंधियों को देखकर मेरे अंग कांप रहे हैं और मेरा मुंह सूख रहा है।
English: Arjuna said: O Krishna, seeing my kinsmen gathered here, eager to fight, my limbs are trembling, and my mouth is parched.
श्लोक 29
संस्कृत: वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते। गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते।।
हिंदी: मेरे शरीर में कंपकंपी हो रही है, रोंगटे खड़े हो रहे हैं, गांडीव धनुष मेरे हाथ से गिर रहा है और त्वचा जल रही है।
English: My body trembles, my hair stands on end, my Gandiva bow slips from my hand, and my skin burns.
श्लोक 30
संस्कृत: न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः। निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।।
हिंदी: मैं खड़ा नहीं रह पा रहा हूं, मेरा मन चक्कर खा रहा है और हे केशव! मैं अशुभ लक्षण देख रहा हूं।
English: I am unable to stand, my mind is reeling, and I foresee only adverse omens, O Keshava.
श्लोक 31
संस्कृत: न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे। न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।।
हिंदी: हे कृष्ण! इस युद्ध में अपने संबंधियों को मारने के बाद मैं कोई भलाई नहीं देखता। मुझे न विजय चाहिए, न राज्य और न सुख।
English: O Krishna, I see no good in killing my own kinsmen in battle. I desire neither victory, kingdom, nor pleasures.
श्लोक 32
संस्कृत: किं नो राज्येन गोविंद किं भोगैर्जीवितेन वा। येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च।।
हिंदी: हे गोविंद! हमें इस राज्य, भोग या जीवन का क्या लाभ, जब वे लोग ही नहीं रहेंगे जिनके लिए हम यह सब चाहते हैं।
English: O Govinda, what use is a kingdom, happiness, or even life itself, when those for whom we desire these things are no more?
श्लोक 33
संस्कृत: येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च। त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च।।
हिंदी: जिनके लिए हम राज्य, भोग और सुख चाहते हैं, वे ही लोग युद्ध में अपने प्राण और धन छोड़ने के लिए खड़े हैं।
English: Those for whom we desire a kingdom, enjoyments, and pleasures stand here in battle, ready to give up their lives and wealth.
श्लोक 34
संस्कृत: आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः। मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा।।
हिंदी: हमारे आचार्य, पितर, पुत्र, पितामह, मामा, ससुर, पौत्र, देवर और अन्य संबंधी यहां खड़े हैं।
English: Teachers, fathers, sons, grandfathers, uncles, fathers-in-law, grandsons, brothers-in-law, and other relatives are here.
श्लोक 35
संस्कृत: एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन। अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते।।
हिंदी: हे मधुसूदन! मैं इन्हें मारना नहीं चाहता, भले ही वे मुझे मार दें। मैं तीनों लोकों का राज्य पाने के लिए भी इन्हें मारना नहीं चाहता, फिर केवल पृथ्वी के लिए तो बिल्कुल नहीं।
English: O Madhusudana, I do not wish to slay them, even if they kill me. I do not want the dominion of the three worlds, much less for the sake of this earth.
श्लोक 36
संस्कृत: पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः। तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्।।
हिंदी: इन आततायियों को मारने से हमें केवल पाप ही लगेगा। इसलिए, हमें अपने ही स्वजन और धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारने का अधिकार नहीं है।
English: By slaying these aggressors, sin alone will overcome us. Therefore, it is not right for us to kill our own kinsmen, the sons of Dhritarashtra.
श्लोक 37
संस्कृत: कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम्। कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन।।
हिंदी: हे जनार्दन! कुल के नाश से होने वाले दोषों को देखते हुए, हमें इस पाप से बचने का उपाय क्यों नहीं सोचना चाहिए?
English: O Janardana, seeing as we understand the sin arising from destroying a dynasty, why should we not turn away from this evil?
श्लोक 38
संस्कृत: कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः। धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत।।
हिंदी: कुल के नाश से उसके शाश्वत धर्म नष्ट हो जाते हैं, और धर्म के नाश होने पर कुल में अधर्म व्याप्त हो जाता है।
English: When a dynasty is destroyed, its eternal traditions are lost, and with the loss of tradition, the entire clan succumbs to irreligion.
श्लोक 39
संस्कृत: अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः। स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः।।
हिंदी: हे कृष्ण! अधर्म के बढ़ने से कुल की स्त्रियां दूषित हो जाती हैं, और हे वार्ष्णेय! दूषित स्त्रियों से वर्णसंकर उत्पन्न होता है।
English: O Krishna, with the rise of irreligion, the women of the clan become corrupted, and from their corruption, unwanted progeny arises, O Varshneya.
श्लोक 40
संस्कृत: संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च। पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः।।
हिंदी: वर्णसंकर कुल और कुलघातियों को नरक में ले जाता है। इनका श्राद्ध और पिंडदान बंद हो जाने से इनके पितर गिर जाते हैं।
English: Such unwanted progeny leads the family and its destroyers to hell. Deprived of ancestral offerings and rites, their forefathers fall from grace.
श्लोक 41
संस्कृत: दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकैः। उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः।।
हिंदी: इन कुलघातियों के दोषों से वर्णसंकर उत्पन्न होता है, जिससे जाति और कुल के शाश्वत धर्म नष्ट हो जाते हैं।
English: By these crimes of the family destroyers, causing unwanted progeny, the eternal family and social duties are destroyed.
श्लोक 42
संस्कृत: उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन। नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम।।
हिंदी: हे जनार्दन! जिन मनुष्यों का कुल धर्म नष्ट हो जाता है, वे अनिश्चित काल तक नरक में निवास करते हैं, ऐसा हमने सुना है।
English: O Janardana, we have heard that people whose family duties are destroyed dwell in hell for an indefinite period.
श्लोक 43
संस्कृत: अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्। यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः।।
हिंदी: हाय! यह कितना बड़ा पाप है, जिसे करने का हमने निश्चय किया है। राज्य और सुख की लालसा में हम अपने ही स्वजनों को मारने को उद्यत हैं।
English: Alas, we are ready to commit a great sin, driven by the greed for kingdom and pleasures, we intend to kill our own kinsmen.
श्लोक 44
संस्कृत: यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः। धार्तराष्ट्रा रणे हन्युः तन्मे क्षेमतरं भवेत्।।
हिंदी: यदि शस्त्रधारी धृतराष्ट्र के पुत्र युद्ध में मुझे शस्त्रहीन और प्रतिकार न करने वाले को मार दें, तो यह मेरे लिए अधिक कल्याणकारी होगा।
English: If the armed sons of Dhritarashtra kill me unarmed and unresisting on the battlefield, that will be better for me.
श्लोक 45
संस्कृत: संजय उवाच। एवमुक्त्वार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत्। विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः।।
हिंदी: संजय ने कहा: ऐसा कहकर अर्जुन ने रणभूमि में धनुष और बाण छोड़ दिए और अत्यंत शोक और विषाद से भरकर रथ के पिछले भाग में बैठ गए।
English: Sanjaya said: Having spoken thus, Arjuna cast aside his bow and arrows, and sat down on the chariot, his mind overwhelmed with sorrow.
श्लोक 46
संस्कृत: यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः। कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्।।
हिंदी: यद्यपि ये लोभ से अंधे हुए धृतराष्ट्र के पुत्र कुल के नाश में दोष और मित्रद्रोह के पाप को नहीं देख रहे हैं।
English: Even though these men, blinded by greed, see no fault in destroying their family or quarrelling with friends.
श्लोक 47
संस्कृत: कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम्। कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन।।
हिंदी: फिर भी हे जनार्दन, यह देखकर कि कुल के विनाश से होने वाले पापों से बचने का उपाय क्यों न किया जाए?
English: Still, O Janardana, why should we, who clearly see the sin in destroying a family, not turn away from this evil?
अध्याय 1: अर्जुन विषाद योग का सारांश
संस्कृत नाम: अर्जुन विषाद योग
अध्याय विषय: इस अध्याय में अर्जुन का मानसिक संघर्ष और विषाद वर्णित है।
सारांश:
पहले अध्याय में, कौरव और पांडव सेनाएं युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र में एकत्रित होती हैं। अर्जुन, अपने परिवार और स्वजनों को युद्ध के मैदान में देखकर, गहरे दुख और संशय में पड़ जाते हैं। वे सोचते हैं कि इस युद्ध से केवल पाप और विनाश ही होगा। अर्जुन धर्म और अधर्म के बीच के इस संघर्ष को समझने में असमर्थ रहते हैं और अपने कर्तव्य पर प्रश्न उठाते हैं। इस मानसिक संघर्ष में, अर्जुन युद्ध में भाग लेने के लिए तैयार नहीं होते और अपने धनुष-बाण को एक ओर रखकर रथ में बैठ जाते हैं।
अध्याय भगवान श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन की भूमिका तैयार करता है, जो अगले अध्यायों में अर्जुन को सही दृष्टिकोण प्रदान करेंगे।
मुख्य सन्देश: विषम परिस्थितियों में सही मार्गदर्शन और ज्ञान की आवश्यकता होती है। यह अध्याय धर्म, कर्तव्य और व्यक्तिगत संघर्षों का परिचायक है।